वर्ष वनुष्वापि गच्छ देवान। - अथर्ववेद १२।३।५३
श्लोक का सरल अनुवाद
"उत्तम कर्म कर और देवता बन जा।"
श्लोक की व्याख्या एवं भावार्थ
अथर्ववेद का यह दिव्य श्लोक हमें हमारे जीवन का ध्येय स्पष्ट करता है—सत्कर्म के माध्यम से स्वयं को देवत्व की ओर उन्नत करना।
मनुष्य जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक सुख नहीं, बल्कि आत्मिक और सामाजिक उत्थान भी है। 'वर्ष' अर्थात उत्कृष्टता की ओर बढ़ना और 'देवान् गच्छ' का तात्पर्य है – देवताओं की श्रेणी में जाना।
यह तभी संभव है जब मनुष्य अपने संकल्पों और कर्मों को दिव्यता की ओर मोड़े।
श्लोक से जीवन को दिशा:
- सद्वाक्य बोलें – वाणी से किसी को चोट न पहुँचाएँ।
- परोपकार करें – ज़रूरतमंदों की सेवा करें।
- दान और यज्ञ करें – समाज व प्रकृति के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभाएँ।
- माता-पिता व आचार्यों की सेवा करें – यही सच्चा ऋण चुकाना है।
- समान वालों से स्नेहपूर्वक मेल-जोल रखें और छोटे-बड़ों से विनम्र व्यवहार करें।
आधुनिक जीवन में उपयोगिता
आज की भागदौड़ भरी दुनिया में यह वैदिक सूत्र हमें संयम, सेवा और सकारात्मकता की राह दिखाता है। यदि हम अपने कर्मों को सुधारें, तो न केवल अपना जीवन संवार सकते हैं बल्कि समाज को भी दिशा दे सकते हैं।
निष्कर्ष:
यह श्लोक केवल पठन के लिए नहीं, जीवन में उतारने योग्य है। इसे अपनाकर हम न केवल बेहतर मनुष्य, बल्कि दिव्य चेतना के वाहक बन सकते हैं।