🌟 अहमिन्द्रो न परा जिग्य इद्धनम्। – ऋग्वेद १०।४८।५ “मैं इन्द्र हूँ — मैं अपने ऐश्वर्य को कभी हार नहीं सकता।”
📖 "अहमिन्द्रो न परा जिग्य इद्धनम्।" श्लोक पाठ व व्याख्या:
- अहमिन्द्रो न परा जिग्य इद्धनम्।
— ऋग्वेद १०।४८।५
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🔠"अहमिन्द्रो न परा जिग्य इद्धनम्।" श्लोक के संस्कृत पदों का सरल अर्थ:

पद अर्थ-
अहम् - मैं
इन्द्रः - इन्द्र, शक्ति का प्रतीक
न - नहीं
परा- हार, पराजय
जिग्य - हार सकता
इद्धनम्- ऐश्वर्य सम्पन्न, तेजस्वी, शक्तिशाली
🧠 "अहमिन्द्रो न परा जिग्य इद्धनम्।" मनोवैज्ञानिक श्लोक का शाब्दिक भावार्थ:
मैं इन्द्र हूँ, मैं अपने ऐश्वर्य को कभी हार नहीं सकता।
यह श्लोक केवल एक दैविक आत्मघोषणा नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक स्वमान और आत्म-चेतना का एक गर्जन है।
🪔 "अहमिन्द्रो न परा जिग्य इद्धनम्।" श्लोक का गूढ़ दार्शनिक अर्थ:
यहाँ "इन्द्र" इस तरह का प्रतीक है -
- आत्मिक बल का
- सृजनात्मकता और विजय का
- संपूर्ण ऐश्वर्य का जो हर मानव के भीतर सुषुप्त अवस्था में निहित होता है।
जब कोई ऋषि यह कहता है — "अहमिन्द्रः।" — तो वह स्वयं को ईश्वर का पुत्र मानते हुए आत्मविश्वास से भर उठता है। यह अभिव्यक्ति है — "मैं पराजय के लिए नहीं, विजय के लिए बना हूँ।"
🔍 वैदिक मनोविज्ञान और "अहमिन्द्रो न परा जिग्य इद्धनम्।"श्लोक:
यह श्लोक आत्मबल और आत्मगौरव का गूढ़ शिखर है। यह मनोविज्ञान की प्रेरणादायक सूक्ति है।
> 🔹 "Indra" = Higher Self
🔹 "Aham" = Self-realization
"मैं इन्द्र हूँ" कहकर ऋषि यह सन्देश दे रहा है कि —
मैं दुर्बल, हीन और संकुचित विचारों का शिकार नहीं हूँ। मैं आत्मा का प्रकाश हूँ। मैं उसी परमात्मा की अभिव्यक्ति हूँ जिसने इस जगत को रचा है।
📜आत्मबल बढ़ाने के लिए वैदिक इतिहास और वैज्ञानिक पृष्ठभूमि:
इन्द्र वह है जो न केवल विद्युत और बिजली का स्वामी है, बल्कि युद्ध, पराक्रम और पुरुषार्थ का भी आदर्श है ।
इस श्लोक में मानव की चेतना को इन्द्रवत बनाने का आग्रह है:
जहाँ आत्मा कहती है — "मैं किसी भी प्रकार से हीन नहीं हूँ।"
जहाँ व्यक्ति कहता है — "मुझे पराजित नहीं किया जा सकता, क्योंकि मेरा आधार ईश्वर है।"
यह वैदिक विज्ञान और मनोविज्ञान का आधार है — आत्मा अजेय है। आत्मा परम है।
🧭 आधुनिक सन्दर्भ में आत्मबल बढ़ाने का यह श्लोक:
आज का युग चाहे तकनीकी हो या मनोवैज्ञानिक — हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में असुरक्षा, डिप्रेशन, आत्म-संशय और पराजय की भावना से ग्रस्त है।
यह श्लोक उस परिस्थिति में आत्मबोध की गूंज है:
🙌 "तुम हारने के लिए नहीं बने हो। तुम इन्द्र हो – विजय तुम्हारा स्वभाव है।"
जब कोई छात्र बार-बार परीक्षा में असफल होता है, तब यह श्लोक उसके लिए उम्मीद की ज्योति है।
जब कोई स्त्री अपने जीवन में संघर्ष कर रही होती है, यह श्लोक उसकी आत्मा को शक्ति का स्पर्श देता है।
जब कोई युवा बेरोजगारी से निराश हो जाता है, यह श्लोक उसे याद दिलाता है — "तेरे अंदर इन्द्र बसता है। तू पराजय नहीं, विजय का वंशज है।"
शरीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक ऐश्वर्य:
जगत्पिता ने अपने पुत्र की झोली को नाना प्रकार के ऐश्वर्य से भर दिया है।
इस कथन का तात्पर्य है कि ईश्वर ने हमें चार प्रकार के ऐश्वर्य दिए हैं:
प्रकार उदाहरण-
- 🧘 शारीरिक स्वास्थ्य, शक्ति, ऊर्जा
- 🧠 मानसिक आत्मबल, इच्छाशक्ति, सहनशीलता
- 🧩 बौद्धिक विवेक, ज्ञान, निर्णय क्षमता
- 🌌 आत्मिक शांति, करुणा, दिव्यता
इस ऐश्वर्य का सम्मान करना ही इस श्लोक का वास्तविक उद्देश्य है।
🗣️ प्रेरणादायक उद्धरण:
"मैं इन्द्र हूँ। मुझे कोई नहीं हरा सकता – सिवाय मेरे संदेह के।"
"मुझे पराजित करने से पहले मेरी आस्था को पराजित करना होगा – और यह असंभव है।"
📢 "अहमिन्द्रो न परा जिग्य इद्धनम्" श्लोक हमें क्या सिखाता है?
- स्वयं को निम्न समझना पाप है।
- आत्मा की शक्ति को पहचानो, क्योंकि तुम इन्द्र हो।
- पराजय केवल तभी आती है जब आत्मा अपने को कमतर मानने लगती है।
📚 निष्कर्ष:
> यह श्लोक आत्मा की गर्जना है, चेतना की जाग्रति है और आत्मबल का उद्घोष है।
“मैं इन्द्र हूँ” — जब व्यक्ति यह गहराई से मान ले, तो उसके जीवन की दिशा ही बदल जाती है।
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