"शतहस्त समाहर सहस्त्रहस्त संकिर। - का भावार्थ, दान का महत्व, लाभ और दिव्य कर्तव्यों का वर्णन
परिचय:
अथर्ववेद का एक अत्यंत प्रभावशाली मंत्र है: "शतहस्त समाहर सहस्त्रहस्त संकिर।" इसका अर्थ है –
हजार हाथों से कमा और सौ हाथों से दान कर।यह मंत्र केवल धन की बात नहीं करता, बल्कि जीवन के एक संतुलित, नैतिक और परमार्थपरक दृष्टिकोण की शिक्षा देता है। यह परिश्रम, पुरुषार्थ और निस्वार्थ सेवा का संगम है।

परिश्रम और पुरुषार्थ से धनार्जन: सहस्त्रहस्त संकिर
- पुरुषार्थ का महत्व: यह मंत्र हमें कर्मयोग सिखाता है। ईमानदारी, लगन और वैध उपायों से धनार्जन करना ही सच्ची समृद्धि की शुरुआत है।
- विविध माध्यम: "हजार हाथों" से कमा का अर्थ है—अनेक प्रकार के वैध, नैतिक उपायों से आय अर्जित करना।
- श्रम की गरिमा: मेहनत और ईमानदारी से प्राप्त धन ही शुभ और फलदायक होता है।
दान का महत्व: शतहस्त समाहर
धन का वास्तविक मूल्य तब है जब उसका उपयोग दूसरों की भलाई में हो। "सौ हाथों से दान करना" का अर्थ है उदारता के साथ देना। यह केवल अनुदान नहीं, बल्कि कृतज्ञता और करुणा की भावना है।
दान की योग्य श्रेणियाँ:
- रोगियों के लिए: चिकित्सा और उपचार की सहायता।
- निराश्रितों के लिए: बेघरों और असहायों की सहायता।
- विद्यार्थियों के लिए: शिक्षा और संसाधनों में सहयोग।
- धार्मिक संस्थाओं को: सत्कार्य और आध्यात्मिक उन्नति में भागीदारी।
दान के लाभ: भौतिक और आत्मिक उन्नति
- सतत उन्नति: दान करने वाला परिवार निरंतर समृद्ध होता है। "दान देने से धन घटता नहीं, बल्कि बढ़ता है।"
- सकारात्मक ऊर्जा: ब्रह्मांड दात्री प्रवृत्ति को और अधिक लौटाता है।
- सामाजिक संतुलन: दान सामाजिक असमानताओं को मिटाने में मदद करता है।
- आंतरिक संतोष: दान से प्राप्त आत्मिक सुख और शांति अमूल्य है।
आधुनिक युग में समृद्धि और सेवा का संतुलन
- आय के नैतिक स्रोत चुनें।
- मासिक बजट में "दान" को शामिल करें।
- धन ही नहीं, समय और ज्ञान का भी दान करें।
- सत्य और पारदर्शिता के साथ दान करें।
- दान को आदत बनाएं, एक बार का कर्तव्य नहीं।
"शतहस्त समाहर सहस्त्रहस्त संकिर:" की विस्तृत व्याख्या
मंत्र का पहला भाग "सहस्त्रहस्त संकिर" (हजार हाथों से कमा) इस बात पर जोर देता है कि धनार्जन के लिए मनुष्य को अथक परिश्रम और पुरुषार्थ करना चाहिए। "हजारों हाथों" का अर्थ है कि हमें अनेक शुभ और वैध उपायों से, पूरी लगन और ईमानदारी के साथ धन कमाना चाहिए। यह आलस्य या भाग्य पर निर्भरता की वकालत नहीं करता, बल्कि कर्मठता और उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करता है।
- मेहनत और ईमानदारी: धन कमाते समय ईमानदारी और नैतिक मूल्यों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। केवल वही धन शुभ होता है जो धर्म और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित हो।
- अनेक उपाय: इसका अर्थ यह भी है कि हमें केवल एक स्रोत पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि अपनी क्षमताओं और ज्ञान का उपयोग करके विभिन्न शुभ माध्यमों से आय अर्जित करनी चाहिए। यह आधुनिक युग में विविधीकरण (diversification) के सिद्धांत के समान है।
- पुरुषार्थ: यह शब्द मनुष्य के अपने प्रयासों, लगन और दृढ़ संकल्प को दर्शाता है। बिना पुरुषार्थ के कोई भी बड़ा लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता, फिर चाहे वह धन कमाना हो या समाज में योगदान देना।
मंत्र का दूसरा भाग "शतहस्त समाहर" (सौ हाथों से दान कर) हमें यह सिखाता है कि कमाए हुए धन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा दान में देना चाहिए। अथर्ववेद स्पष्ट कहता है: "जिस घर में दान नहीं दिया जाता, वह घर घर नहीं है।" यह पंक्ति दान के महत्व को इतनी दृढ़ता से स्थापित करती है कि यह एक जीवनशैली का हिस्सा बन जाती है।
यह केवल कुछ रुपये देने की बात नहीं है, बल्कि यह एक मानसिकता है – कृतज्ञता, करुणा और साझा करने की भावना की। दान देने से न केवल समाज का भला होता है, बल्कि दाता को भी आंतरिक शांति और संतोष की अनुभूति होती है।
यह मंत्र हमें जीवन में अर्जन और वितरण – दोनों में संतुलन की शिक्षा देता है। अर्जन हो पुरुषार्थ से और वितरण हो उदारता से।
दान किसे दें और कैसे दें?
मंत्र सुझाव देता है कि धन में से दसवाँ भाग दान करना चाहिए। यह एक प्राचीन परंपरा है जिसे 'दशांश' या 'टायदिंग' के नाम से जाना जाता है। दान के लिए कई श्रेणियां बताई गई हैं:
- रोगियों: जो लोग स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं और जिनके पास उपचार के लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं, उन्हें दान देना सबसे पुण्य का कार्य है।
- निराश्रितों: बेघर, असहाय, या जिनके पास कोई सहारा नहीं है, उनकी मदद करना समाज का कर्तव्य है।
- विद्यार्थियों: शिक्षा ग्रहण कर रहे योग्य छात्रों को सहायता प्रदान करना ज्ञान के प्रसार और भविष्य के निर्माण में सहायक होता है।
- धार्मिक संस्थाओं: जो संस्थाएं धर्म के प्रचार-प्रसार, परोपकारी कार्यों और आध्यात्मिक विकास के लिए काम करती हैं, उन्हें भी दान देना चाहिए।
वेदों में दान का स्थान
- अन्नदान: भूखों को भोजन देना।
- विद्यादान: ज्ञान का प्रसार करना।
- धनदान: आर्थिक सहायता देना।
- सेवादान: सेवा भाव से सहायता करना।
दानशील जीवन की विशेषताएँ
- कुटुम्ब में समृद्धि और शांति का वास होता है।
- पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
- सकारात्मक ऊर्जा और मानसिक संतुलन मिलता है।
श्लोक का सामाजिक और आधुनिक सन्देश
यदि हर व्यक्ति अपने अर्जित धन का एक अंश समाज के लिए समर्पित करे, तो एक समरस, समृद्ध और सशक्त समाज की स्थापना हो सकती है।
- उद्यमी – मुनाफे का अंश गरीब बच्चों की शिक्षा में लगाएं।
- गृहस्थ – भोजन का अंश ज़रूरतमंदों को दें।
- युवा – अपने समय का हिस्सा सेवा कार्य में दें।
आधुनिक युग में दान और समृद्धि का संतुलन
- आय के नैतिक स्रोत: हमें हमेशा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी आय के स्रोत वैध और नैतिक हों।
- वित्तीय नियोजन: दान को अपने मासिक या वार्षिक बजट का एक अभिन्न अंग बनाएं।
- समय का दान: केवल धन ही नहीं, अपना समय और कौशल भी दान करें। स्वयंसेवा (volunteering) भी दान का ही एक रूप है।
- पारदर्शी दान: सुनिश्चित करें कि आपका दान सही हाथों तक पहुंचे और उसका उपयोग वास्तविक ज़रूरतमंदों के लिए हो।
- सतत दान: दान एक बार का कार्य नहीं, बल्कि एक सतत प्रक्रिया है।
निष्कर्ष: कर्म और करुणा का संगम
"शतहस्त समाहर सहस्त्रहस्त संकिर" केवल एक वैदिक श्लोक नहीं, बल्कि जीवन का मार्गदर्शन है। यह हमें सिखाता है कि धन केवल अर्जित करने की वस्तु नहीं, बल्कि वितरण की भी शक्ति है। जो व्यक्ति और परिवार इस ज्ञान को अपनाते हैं, वे भौतिक ही नहीं, आत्मिक रूप से भी समृद्ध होते हैं।
आइए, इस वैदिक मूलमंत्र को अपनाएं और अपने जीवन को समृद्ध और समाज के लिए उपयोगी बनाएं।
“जो धन बहता है वही पवित्र होता है, जैसे नदी का जल।”