सं गच्छध्वं सं वदध्वम् – एकता और समरसता का वैदिक मंत्र | Ekk Nayi Soch

सं गच्छध्वं सं वदध्वम् – मिलकर चलो, मिलकर बोलो

(ऋग्वेद १०।१९१।२)
– एकता, समरसता और सामाजिक समन्वय का वैदिक संदेश

"सं गच्छध्वं सं वदध्वम् श्लोक का अर्थ और महत्व – एकता और वैदिक समरसता का संदेश | ऋग्वेद 10.191.2 | Ek Nai Soch ब्लॉग"

श्लोक

"सं गच्छध्वं सं वदध्वम्।"
(ऋग्वेद १०।१९१।२)

अनुवाद

“मिलकर चलो, मिलकर बोलो।”

 "सं गच्छध्वं सं वदध्वम्।" का शाब्दिक अर्थ

  • सं = साथ, मिलकर
  • गच्छध्वं = जाओ, चलो
  • वदध्वम् = बोलो

भावार्थ

ऋग्वेद का यह दिव्य मंत्र एकता और समन्वय का प्रतीक है। यह श्लोक केवल एक वैदिक प्रार्थना नहीं, बल्कि समाज में समरसता, संगठन और सहयोग की नींव रखने वाला सार्वकालिक संदेश है। यह मानवता को एक सूत्र में बाँधने की प्रेरणा देता है।

आध्यात्मिक सन्देश

वेदों में सत्य, धर्म, प्रेम और एकता के मूलभूत सिद्धांत निहित हैं। इस श्लोक में ईश्वर ने मनुष्यों को यह सन्देश दिया है कि जब तक हम मिलकर नहीं चलते, बोलते और सोचते, तब तक हम न तो आत्मिक प्रगति कर सकते हैं और न ही सामाजिक विकास।

  • मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसका विकास अकेले नहीं, समाज के साथ होता है।
  • सत्य और एकता के पथ पर चलना ही आध्यात्मिक उन्नति की सीढ़ी है।
  • जब लोग साथ मिलकर बोलते हैं, तो संवाद से समाधान निकलता है, विरोध नहीं।

सामाजिक और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में उपयोगिता

आज के समय में जब समाज में विचारों का टकराव, वैचारिक असहिष्णुता और टुकड़ों में बँटी सोच का बोलबाला है, तब यह श्लोक एक संजीवनी की तरह कार्य करता है। यह हमें बताता है—

  • हम विचारधाराओं में भिन्न हो सकते हैं, परंतु लक्ष्य में एक हो सकते हैं।
  • मिलकर बोलना यानी सहमति और सह-अस्तित्व का मार्ग अपनाना।
  • संगठित समाज ही शांति, प्रगति और विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।
  • राष्ट्र निर्माण एकजुट प्रयासों से ही संभव है – एक उद्देश्य, एक विचार, एक लक्ष्य।

परिवार और जीवन में प्रासंगिकता

परिवार में सभी सदस्यों को मिलकर चलना चाहिए – तभी वहाँ सुख, शांति और स्नेह बना रहता है।

जीवन में जब मन, वाणी और कर्म एक हों – तभी सफलता, संतोष और समृद्धि संभव होती है।

विद्यालय, कार्यस्थल या समाज – हर जगह “सं गच्छध्वं सं वदध्वम्” का पालन करने से समरसता आती है।

निष्कर्ष

"सं गच्छध्वं सं वदध्वम्" न केवल एक वैदिक श्लोक है, बल्कि वर्तमान युग की आवश्यकता है। यदि हम इसे अपने जीवन और समाज में अपनाएं, तो संघर्ष की जगह सहयोग होगा, द्वेष की जगह प्रेम और अव्यवस्था की जगह सुशासन आएगा।

यह मंत्र हमें “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना की ओर ले जाता है — जहाँ पूरा विश्व एक परिवार की तरह साथ चलता है, साथ बोलता है।


पढ़ते रहिए Ekk Nayi Soch — वैदिक विचारों से समाज में नई चेतना!

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