पत्नी ही सच्चा घर है – ऋग्वेद का पारिवारिक आदर्श | जयेदस्तम् - ऋग्वेद ३।५३।४

जयेदस्तम। - ऋग्वेद ३।५३।४

"जयेदस्तम।" श्लोक का अर्थ:

हे ऐश्वर्यशाली पति! पत्नी ही घर है।

श्लोक का भावार्थ:

"पत्नी ही घर है।" इस सूक्त में ऋग्वेद हमें पारिवारिक जीवन का एक महत्वपूर्ण आदर्श देता है। ईंट, पत्थर, लकड़ी से बना मकान केवल एक भौतिक संरचना है, लेकिन उसमें आत्मा तभी आती है जब उसमें एक सुसंस्कृत, प्रेममयी और जिम्मेदार पत्नी हो।

ऋग्वेद का यह श्लोक नारी की महिमा को दर्शाते हुए कहता है कि एक स्त्री ही किसी घर को "घर" बनाती है। केवल ईंट, पत्थर, सीमेंट से बनी चार दीवारी एक मकान होती है, लेकिन उसमें जब पत्नी का स्नेह, संस्कार, सेवा और सौंदर्य जुड़ता है, तभी वह मकान ‘घर’ बनता है।

पत्नी ही घर है – ऋग्वेद ३।५३।४

पत्नी का वैदिक स्वरूप

वेदों में पत्नी को "गृहलक्ष्मी", "धर्मपत्नी", और "सहधर्मिणी" की संज्ञा दी गई है। वह केवल परिवार की संरक्षिका नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना की सहभागी भी होती है। वह जीवन के प्रत्येक यज्ञ में पति की पूर्ण सहभागी है – चाहे वह अग्निहोत्र हो, अतिथि सत्कार हो, या पञ्चमहायज्ञ।

पत्नी की भूमिका:

  • 1. परिवार की संस्कारदात्री: पत्नी ही सुसंस्कृत और नैतिक सन्तानें जन्म देती है और उनका पालन करती है।
  • 2. गृह का संचालन: वह घर की व्यवस्था, शांति, स्वच्छता और सौंदर्य की धुरी होती है।
  • 3. अतिथि सेवा: भारतीय संस्कृति में अतिथि को देवता माना गया है और उसकी सेवा का उत्तरदायित्व पत्नी निभाती है।
  • 4. पंचयज्ञों की प्रेरक: वह नित्यकर्म, यज्ञ, वेद पाठ और सेवा जैसे कर्तव्यों को परिवार में नियमित बनाए रखती है।

"बिन पत्नी घर भूत का डेरा" – यह उक्ति दर्शाती है कि एक परिवार में यदि स्त्री न हो, तो वह घर निर्जीव, नीरस और निष्प्राण बन जाता है।

वैदिक समाज में नारी का सम्मान

वेदों में नारी को कभी अबला नहीं माना गया। उसे "शक्ति", "सरस्वती", "सहचरी" की उपाधियाँ दी गई हैं। यजुर्वेद में कहा गया है – “स्त्री शिक्षिता धर्मिष्ठा जिज्ञासु भूयात।” अर्थात स्त्री शिक्षित, धार्मिक और ज्ञान की जिज्ञासा रखनेवाली होनी चाहिए।

आज के समाज में "जयेदस्तम्" श्लोक की प्रासंगिकता:

जब आज की भागदौड़ भरी जीवनशैली में रिश्ते कमजोर हो रहे हैं, वैदिक सूत्र "जयेदस्तम" हमें यह सिखाता है कि गृहस्थ जीवन का सच्चा सौंदर्य एक सम्मानित, प्रेमिल और सहयोगी दांपत्य जीवन में है।

"जयेदस्तम्" श्लोक से समाज के लिए संदेश:

हर पति को चाहिए कि वह अपनी पत्नी का सम्मान करे, उसकी भावनाओं को समझे और उसे अपना सच्चा सहयोगी माने। और हर पत्नी को चाहिए कि वह अपने घर को एक मंदिर की तरह संवार कर उसमें प्रेम और संस्कार की खुशबू बिखेरे।

ऋग्वेद का यह श्लोक पुरुष को याद दिलाता है कि पत्नी मात्र साथी नहीं, अपितु जीवन का मूल आधार है। उसका सम्मान करना, उसकी सेवा करना, और उसे गरिमा देना ही सच्चा वैदिक धर्म है।

निष्कर्ष:

“जयेदस्तम” श्लोक हमें याद दिलाता है कि सच्चा ऐश्वर्य वही है, जहाँ स्त्री का मान-सम्मान हो। वह घर जिसमें पत्नी का आदर होता है, वहाँ सुख, शांति, समृद्धि और संस्कारों की वर्षा होती है।

अतः नारी को मात्र गृहस्थी की एक अंग नहीं, बल्कि संपूर्ण ‘गृह’ मानें – उसका सम्मान करें, उसका आदर करें।


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