"मा पणिभू:" - ऋग्वेद का संदेश: दानशीलता अपनाओ, कंजूसी छोड़ो

मा पणिभू: - ऋग्वेद का संदेश: दानशीलता अपनाओ, कंजूसी छोड़ो

श्लोक:
मा पणिभू:
(ऋग्वेद १।३३।३)

श्लोक का सरल अर्थ

हे मनुष्य! तू कृपण (कंजूस) मत बन।

विस्तृत व्याख्या

यह ऋचा मनुष्य को यह निर्देश देती है कि वह अपने जीवन में कृपणता न अपनाए। कंजूस व्यक्ति न स्वयं अपने संसाधनों का उपयोग करता है और न ही दूसरों के हित में उनका प्रयोग करता है। उसका संग्रहित धन न तो उपयोग में आता है, न ही सम्मान पाता है — बल्कि धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है।

वेद हमें दान और सेवा का मार्ग दिखाते हैं। जब हम खुलकर दान करते हैं, तो समाज में सद्भाव और समृद्धि की धारा बहती है। यह न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग है, बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व भी है।

सामाजिक संदेश

  • कंजूसी त्यागो, उदारता अपनाओ।
  • धन का सदुपयोग करो - स्वयं और समाज दोनों के लिए।
  • दान केवल धन नहीं, समय, सेवा और ज्ञान का भी हो सकता है।
  • सत्य, दान और सेवा से ही समाज में स्थायी परिवर्तन आता है।

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