त्वं सोम क्रतुभिः सुक्रतुभूः – श्रेष्ठ कर्मों से जीवन का उत्थान | ऋग्वेद १।९९।२

ऋग्वेद का यह श्लोक "त्वं सोम क्रतुभिः सुक्रतुभूः" हमें प्रेरित करता है कि जीवन में केवल विचार या आस्था से नहीं, बल्कि शुभ कर्मों से महानता प्राप्त होती है। यह वैदिक विचारधारा का मूल आधार है कि मनुष्य अपने कर्मों से ही अपना भविष्य गढ़ता है।
श्लोक:
त्वं सोम क्रतुभिः सुक्रतुभूः।
– ऋग्वेद १।९९।२
शब्दार्थ:
- त्वं: तू
- सोम: सोम (शांत, मधुर, सौम्य स्वरूप)
- क्रतुभिः: शुभ संकल्पों एवं कर्मों से
- सुक्रतुभूः: उत्तम कर्मों वाला, श्रेष्ठ कार्यकर्ता
भावार्थ:
हे सौम्य स्वभाव वाले! तू अपने शुभ कर्मों द्वारा श्रेष्ठ कार्यकर्ता बन। तू दान, अध्ययन, यज्ञ और पुण्यकर्मों से समाज को दिशा देने वाला बन। यही सच्चा वैदिक जीवन है।
इस वैदिक मंत्र की गहराई:
ऋग्वेद हमें केवल धार्मिक शिक्षाएँ ही नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाता है। यह मंत्र स्पष्ट करता है कि श्रेष्ठता विचारों से नहीं, बल्कि कार्यों से आती है।
सोम देव सौम्यता और संयम के प्रतीक हैं। जैसे सोम रस जीवन को ऊर्जा देता है, वैसे ही सुकर्म समाज को जागरूक और समृद्ध बनाते हैं।
आज के संदर्भ में मंत्र की प्रासंगिकता:
वर्तमान समाज में जहां स्वार्थ और दिखावा अधिक है, वहां यह वैदिक सन्देश आवश्यक है। श्रेष्ठ कर्मों में दया, ईमानदारी, सेवा, और आत्मविकास सम्मिलित हैं। एक शिक्षक जब निःस्वार्थ भाव से ज्ञान देता है, एक किसान जब पसीना बहाता है – वह सभी ‘सुक्रतुभूः’ हैं।
चार वैदिक मार्ग जो सुकर्म की ओर ले जाते हैं:
- दान: गरीब, जरूरतमंदों और ज्ञान के लिए दान करें।
- अध्ययन: आत्म-ज्ञान एवं वैदिक साहित्य का अध्ययन करें।
- यज्ञ: स्वार्थ त्याग कर सामाजिक भलाई में सहभागी बनें।
- शुभ कर्म: सत्य बोलें, दूसरों की सहायता करें और संयमित रहें।
हमारे लिए प्रेरणा:
हमें यह समझना होगा कि जीवन में हमारे कर्म ही हमारी पहचान बनते हैं। जो अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए कार्य करता है, वही वास्तव में श्रेष्ठ है।
इस मंत्र का अनुसरण करके हम न केवल व्यक्तिगत उन्नति, बल्कि सामाजिक और आध्यात्मिक विकास भी कर सकते हैं।
निष्कर्ष:
ऋग्वेद का यह मंत्र एक नई सोच के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देता है – श्रेष्ठ विचार, श्रेष्ठ कर्म, और समाज के लिए समर्पण। यदि हम केवल एक शुभ कर्म से भी शुरुआत करें, तो यह जीवन को धन्य बना सकता है।
तो आइए, आज से ही “सुक्रतुभूः” बनने का संकल्प लें!
– मिशन खोज