अथो श्वा अस्थिरो भवन।
- अथर्ववेद २०।१३०।११
श्लोक अर्थ:
अस्थिर मनुष्य कुत्ते के समान हो जाता है।

व्याख्या:
यह श्लोक मनुष्य को अस्थिरता के त्याग और धैर्य की प्राप्ति का संदेश देता है। 'श्वा' अर्थात कुत्ता, जो हर क्षण किसी भी आवाज़, गंध या स्थिति से विचलित हो जाता है। वैसा ही मन भी जब अनियंत्रित, चंचल और भ्रमित होता है, तो वह अपने लक्ष्य से भटक जाता है।
ऋषि यहाँ हमें चेताते हैं कि — यदि तुम मानसिक रूप से अस्थिर हो गए, तो तुम किसी भी दिशा में स्थायी प्रगति नहीं कर सकते। अतः स्थिर बनो, चट्टान के समान अडिग बनो।
प्रेरणादायक दृष्टांत:
बड़े तूफ़ान, तेज़ वर्षा, ओले और बाढ़ – ये सब प्राकृतिक आपदाएँ चट्टान को हिला नहीं पातीं। उसी तरह मनुष्य को भी जीवन की कठिनाइयों, आलोचनाओं और असफलताओं में विचलित नहीं होना चाहिए।
"दो हथेली हैं कि पृथिवी गोल कर दे।
धरा पर भूडोल कर दे।"
इसका अर्थ यह है कि अगर आपकी एकाग्रता और संकल्प शक्तिशाली हो, तो आप पूरी दुनिया को हिला सकते हैं।
सामाजिक सन्देश:
- आज की दुनिया में जहाँ विकर्षण और अस्थिरता हर जगह है, वहाँ मानसिक स्थिरता अत्यंत आवश्यक है।
- मन का संतुलन ही सफलता की नींव है।
- हर व्यक्ति को अपने विचारों, निर्णयों और मूल्यों में अटल रहना चाहिए।
निष्कर्ष:
“अथो श्वा अस्थिरो भवन” श्लोक हमें मानसिक, नैतिक और आत्मिक रूप से स्थिर होने की प्रेरणा देता है।
आइए, हम सभी यह संकल्प लें कि हम जीवन के हर संघर्ष में अडिग रहेंगे, और अपने भीतर के तूफ़ानों को स्थिरता से शांत करेंगे।