अग्ने नय सुपथा राये – यजुर्वेद का धनार्जन में नैतिकता का संदेश

अग्ने नय सुपथा राये। – यजुर्वेद ५।३६

"अग्ने नय सुपथा राये" श्लोक अर्थ:

हे अग्निदेव! हमें धन प्राप्ति के लिए उत्तम और सच्चे मार्ग पर चलाइए।

"अग्ने नय सुपथा राये" श्लोक की विस्तृत व्याख्या:

यजुर्वेद का यह प्रेरणादायक मंत्र जीवन के अर्थ, धर्म और पुरुषार्थ को संतुलित रूप से जीने का सन्देश देता है। 'अग्ने' अर्थात अग्निदेव, जिन्हें वैदिक परंपरा में पथ-प्रदर्शक, यज्ञवाहक और सत्य के प्रकाशक के रूप में पूजा जाता है। 'सुपथा' का अर्थ है – शुभ, सात्विक और धर्मयुक्त मार्ग। 'राये' का अर्थ है – धन के लिए।

इस मंत्र में मनुष्य से कहा गया है कि वह धन तो अवश्य कमाए, खूब कमाए, परंतु उसे कभी भी अधर्म, अन्याय, शोषण और छल से अर्जित न करे।

आज के युग में जब भौतिकता की अंधी दौड़ में लोग नैतिकता को पीछे छोड़ देते हैं, यह वैदिक सन्देश और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। जो धन धर्म से कमाया गया हो, वही जीवन को समृद्ध करता है, और वही समाज में यश तथा आत्मसंतोष देता है।

अग्ने नय सुपथा राये - यजुर्वेद श्लोक का गूढ़ अर्थ और प्रेरणा

समाज के लिए संदेश:

  • धन कमाओ लेकिन धर्म से, न्याय से।
  • दूसरों का शोषण करके कमाया गया धन टिकता नहीं।
  • सच्चा पुरुषार्थ ही सच्चा ऐश्वर्य है।
  • अग्नि जैसे तेज और पवित्र बनो, और दूसरों के लिए भी प्रकाश बनो।

प्रेरणादायक वैदिक सूत्र:

धर्मेण अर्थः।
– अर्थात धर्म के द्वारा ही धन की प्राप्ति होनी चाहिए।

नैतिक शिक्षा:

सपथ पर चलनेवाला व्यक्ति ही दीर्घकालीन यश और सुख प्राप्त करता है। अनैतिक धन अंततः दुःख और विनाश का कारण बनता है। जीवन में अग्नि की भांति प्रकाशमान बनें और अपने कर्तव्यों से धन को सार्थक बनाएं।


लेखक: Ekk Nayi Soch

Source: यजुर्वेद ५।३६ | Ekknayisoch

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