दीर्घायु जीवन का वैदिक रहस्य – मा पुरा जरसो मृथाः | अथर्ववेद ५।३०।१७

मा पुरा जरसो मृथाः – अथर्ववेद का जीवनदायी मंत्र

मा पुरा जरसो मृथाः।
- अथर्ववेद ५।३०।१७

"मा पुरा जरसो मृथाः।" का शाब्दिक अर्थ:

"मा" = मत, "पुरा" = पहले, "जरसः" = बुढ़ापे से, "मृथाः" = मरना
अर्थ:

बुढ़ापे से पहले मत मर।

विस्तृत व्याख्या:

वेदों में केवल अध्यात्म नहीं, अपितु संपूर्ण जीवन जीने की कला सिखाई गई है। यह मंत्र हमें दीर्घायु और स्वस्थ जीवन जीने की प्रेरणा देता है। ऋषि की यह आज्ञा हमारे भीतर जीवन के प्रति जागरूकता, संतुलन और कर्तव्यों के प्रति सजगता जगाती है।

वैदिक जीवन शैली और दीर्घायु का मंत्र – मा पुरा जरसो मृथाः

"मा पुरा जरसो मृथाः" की जीवन में प्रासंगिकता:

वर्तमान समय में लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह होते जा रहे हैं। तनाव, जंक फूड, आलस्य और अनियमित दिनचर्या व्यक्ति को समय से पहले बुढ़ा बना देती है। यह वैदिक आदेश कहता है – "हे मानव! तू स्वयं को सशक्त बना, समय से पहले मृत्यु को आमंत्रण मत दे।"

दीर्घायु और स्वास्थ्य के वैदिक सूत्र:

1. हितभुक (स्वस्थ भोजन)

भोजन शरीर के अनुकूल हो। सात्त्विक, ताजा, पौष्टिक और ऋतुओं के अनुसार होना चाहिए।

2. ऋतभुक (ऋतुचर्या के अनुसार आहार)

हर ऋतु में शरीर की आवश्यकताएं बदलती हैं, उसका ध्यान रखते हुए भोजन करें।

3. मितभुक (संयमित भोजन)

भोजन सीमित मात्रा में लें। अधिक भोजन अनेक रोगों को जन्म देता है।

4. व्यायाम और प्राणायाम

नियमित योग, प्राणायाम, सूर्य नमस्कार और टहलना दीर्घायु के मूल मंत्र हैं।

5. मानसिक संतुलन और संयम

मन को प्रसन्न रखें। क्रोध, लोभ, मोह से बचें।

6. सत्संग और स्वाध्याय

धार्मिक पुस्तकों का पठन-पाठन और सत्संग जीवन में शुभता लाता है।

7. सेवाभाव और दानशीलता

परोपकार, सेवा और दान जीवन को सार्थकता और मानसिक संतोष देते हैं।

निष्कर्ष:

“मा पुरा जरसो मृथाः” केवल जीवन को बढ़ाने की कामना नहीं, बल्कि जीने की कला सिखाने वाला मन्त्र है। यह हमें स्वस्थ, संयमित, और आनंदमय जीवन जीने की प्रेरणा देता है। आओ, इस वेदवाणी को अपने जीवन का सूत्रवाक्य बनाएं।

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अथर्ववेद, वैदिक मंत्र, स्वस्थ जीवन, दीर्घायु, योग, जीवनशैली, आयुर्वेद, जीवन प्रबंधन

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