ऋग्वेद मंत्र:
विश्वदानीं सुमनसः स्याम।
– ऋग्वेद ६।५२।५
"विश्वदानीं सुमनसः स्याम" अनुवाद:
हम सदा पुष्प के समान कोमल, मधुर और सौम्य स्वभाव वाले बनें।

"विश्वदानीं सुमनसः स्याम" श्लोक की विस्तृत व्याख्या:
ऋग्वेद का यह मंत्र हमें एक सुंदर और प्रेरणादायी जीवन-दर्शन प्रदान करता है। यह हमें पुष्प के गुणों को अपनाने की प्रेरणा देता है:
1. मुस्कुराहट और मधुरता:
जैसे पुष्प बिना किसी स्वार्थ के मुस्कुराता है, वैसे ही हमें भी जीवन में मधुरता बनाए रखनी चाहिए। हमारी मुस्कान लोगों के लिए सुकून का कारण बने।
2. सुगंध जैसा प्रभाव:
पुष्प की सुगंध दूर-दूर तक फैलती है, वैसे ही हमारे विचार और कर्म भी समाज में सकारात्मक ऊर्जा फैलाएं। हम अपने गुणों से समाज को सुवासित करें।
3. निस्वार्थ सेवा:
फूल अपना जीवन दूसरों के लिए समर्पित करता है – चाहे वह पूजा हो या औषधि। इसी तरह हमें भी दूसरों की भलाई के लिए जीना चाहिए – समाज, धर्म और राष्ट्र के लिए।
4. विनम्रता:
पुष्प में सुंदरता होते हुए भी घमंड नहीं होता। हमें भी सौंदर्य, ज्ञान और सफलता मिलने पर विनम्र बने रहना चाहिए।
सामाजिक संदेश:
आज के स्वार्थी युग में यह वैदिक मंत्र हमें स्मरण कराता है कि जीवन को पुष्पवत बनाएं – जिससे यह संसार सुवासित और समरस हो सके।
निष्कर्ष:
"विश्वदानीं सुमनसः स्याम" – यह केवल वैदिक मंत्र नहीं, अपितु एक संपूर्ण जीवन-दर्शन है। अगर हर व्यक्ति पुष्प जैसा बन जाए, तो जीवन भी एक मधुर पुष्प वाटिका बन जाएगा।
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