श्लोक:
मिमीहि श्लोकमास्ये।– ऋग्वेद १।३८।१४
शब्दार्थ:
मिमीहि – भर दो, श्लोकम् – वेद-मंत्र या स्तुति, आस्ये – मुख में।"मिमीहि श्लोकमास्ये" का भावार्थ:
हे मानव! अपने मुख को वेदों के मंत्रों से भर लो। ऐसी वाणी बोलो जो ज्ञानमय हो, सत्य से परिपूर्ण हो और जनकल्याणकारी हो।
"मिमीहि श्लोकमास्ये" की विस्तृत व्याख्या:
वेद केवल पुस्तक नहीं हैं, वे स्वयं ईश्वर का नि:श्वास हैं। वेद हमारे जीवन
को दिशा देने वाले दिव्य सूत्र हैं, जिनमें समस्त ज्ञान, धर्म और सत्य का सार
समाहित है।
यह ऋग्वैदिक श्लोक हमें प्रेरणा देता है कि हम अपने वाणी के साधन – मुख को
वेद-मंत्रों से भरें। इसका तात्पर्य यह है कि हम अपने मुख से वेद का उच्चारण
करें, उन्हें आत्मसात करें और लोक में प्रचार करें।
ऋग्वेद का यह अत्यंत प्रेरणादायक मंत्र हमें स्मरण कराता है कि हमारी वाणी केवल संप्रेषण का साधन नहीं, बल्कि आत्मा का प्रतिबिंब है। जब हमारी वाणी वेद-मंत्रों से युक्त होती है, तब वह केवल शब्द नहीं, एक दिव्य अनुगूँज बन जाती है।
वेद और वाणी का संबंध:
वाणी में शक्ति होती है। जब वाणी वेदों से युक्त होती है, तब वह केवल ध्वनि नहीं, बल्कि ब्रह्मवाणी बन जाती है। वेदों का नियमित पाठ, गान, और प्रचार न केवल आत्मकल्याण का साधन है, बल्कि समाज में धर्म, नीति, सदाचार और संस्कृति का प्रचारक भी है।
वाणी, मानव जीवन की दिशा तय करती है। वेदों के मंत्र न केवल धार्मिक साधना का
माध्यम हैं, बल्कि नैतिकता, सदाचार और आत्मिक चेतना को जागृत करने वाले दिव्य
सूत्र भी हैं। यदि हम अपने मुख में वेदों को बसाएं, तो हमारी वाणी से
- क्रोध नहीं – करुणा निकलेगी,
- अहंकार नहीं – आत्मज्ञान झलकेगा,
- विग्रह नहीं – संयम प्रकट होगा।
आधुनिक सन्दर्भ में उपयोगिता:
आज के युग में जब सोशल मीडिया पर अपशब्द, द्वेष और असत्य का बोलबाला है, वहाँ यह वेदवाणी प्रकाश की किरण बन सकती है।
आज जब संचार के साधन अनेक हैं, तो क्यों न हम वेदों को अपनी अभिव्यक्ति का
आधार बनाएं? क्यों न सोशल मीडिया पर, भाषणों में, शिक्षा में और लेखन में वेद
की वाणी को स्थान दें?
संकल्प लें:
"मैं प्रतिदिन कम से कम एक वैदिक मंत्र का पाठ करूँगा और अपने जीवन व वाणी को पवित्र बनाऊँगा।"
- सकारात्मक विचार फैलाइए।
- वेद-मंत्रों को गाइए, पढ़ाइए और समझाइए।
- संवाद का माध्यम ‘वेदमय वाणी’ बनाइए।
आह्वान:
आइए, हम संकल्प लें कि –
- प्रतिदिन कम से कम एक वेद-मंत्र का उच्चारण करेंगे।
- बच्चों को वेद पढ़ाएँगे।
- अपने मुख को व्यर्थ की बातें करने की बजाय वेद की दिव्यता से भरेंगे।
वेद पाठ के लाभ:
- मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।
- बुद्धि में ओज, स्मरणशक्ति और विवेक की वृद्धि होती है।
- सामाजिक संवाद में मर्यादा और प्रभावशीलता आती है।
वेद पाठ के धार्मिक, सामाजिक और राष्ट्रीय लाभ:
- वैदिक वाणी से मानसिक शांति मिलती है।
- परिवार में संस्कार बढ़ते हैं।
- राष्ट्र में सांस्कृतिक चेतना जागृत होती है।
प्रेरणात्मक निष्कर्ष:
वेद हमारी आत्मा की आवाज हैं। हमें अपने मुख को उसी दिव्य ध्वनि से भरना चाहिए, जिससे युगों-युगों तक ज्ञान, धर्म और संस्कारों का प्रचार होता आया है। अपनी वाणी को वेदों से सजाकर हम न केवल अपने जीवन को सुंदर बना सकते हैं, बल्कि इस समाज और देश को भी पुनः वैदिक तेज से प्रकाशित कर सकते हैं।संकल्प लें:
"मैं प्रतिदिन कम से कम एक वैदिक मंत्र का पाठ करूँगा और अपने जीवन व वाणी को पवित्र बनाऊँगा।"