अश्मा भवतु नस्तनूः।
श्लोक स्रोत: अथर्ववेद २।१३।४
"अश्मा भवतु नस्तनूः" श्लोक का अनुवाद:
हमारे शरीर पत्थर के समान दृढ़ और शक्तिशाली हों।
"अश्मा भवतु नस्तनूः" श्लोक का भावार्थ:
यह वैदिक श्लोक प्रत्येक मानव को अपनी शारीरिक, मानसिक और आत्मिक दृढ़ता की प्रेरणा देता है। यह केवल बाह्य शरीर की कठोरता नहीं, बल्कि भीतर से भी अडिग रहने की चेतना का संदेश देता है।
"अश्मा भवतु नस्तनूः" श्लोक की विस्तृत व्याख्या:
अथर्ववेद का यह सूक्त हमसे कहता है कि हमारा तन लोहे या पत्थर के समान मजबूत होना चाहिए। आज की जीवनशैली, तनाव, अनुचित आहार और व्यायाम की कमी के कारण मनुष्य दुर्बल, आलसी और रोगग्रस्त होता जा रहा है। लेकिन वैदिक ऋषियों की दृष्टि में शरीर एक तपोमय साधना का माध्यम है।

शारीरिक दृढ़ता के उपाय:
- नियमित आसन और व्यायाम: प्रतिदिन योगाभ्यास और शरीर को गति देने वाले व्यायाम करें।
- प्राणायाम: गहरी साँसों के साथ शरीर में ऊर्जा प्रवाहित होती है।
- सात्त्विक और संतुलित आहार: ऋतुकालानुसार भोजन करें जो बल, ओज और तेज बढ़ाए।
- विचारों की शक्ति: सकारात्मक सोच शरीर में भी शक्ति का संचार करती है।
"अश्मा भवतु नस्तनूः" श्लोक का आधुनिक परिप्रेक्ष्य में महत्व:
आज का समय मानसिक और शारीरिक दोनों स्तर पर लचीलेपन और धैर्य की माँग करता है। ‘अश्मा भवतु नस्तनूः’ का आशय केवल कठोरता नहीं, संतुलन और सम्यक दृष्टिकोण से है। जैसे पत्थर कठिन होता है, पर उसपर विश्वास भी किया जाता है। वैसे ही हम अपने जीवन को इतना दृढ़ और भरोसेमंद बनाएं कि कोई भी परिस्थिति हमें डिगा न सके।
लोहे - सी हों मांस - पेशियाँ
पत्थर से भुजदण्ड अभय।
नस - नस में हो लहर आग की
तभी जवानी पाती जय।
निष्कर्ष:
‘अश्मा भवतु नस्तनूः’ केवल शरीर की मांसपेशियों की बात नहीं है, यह संपूर्ण जीवन के लिए एक वेद मंत्र है – साहस, बल, अनुशासन और आत्मबल का। इस श्लोक का पालन कर हम जीवन में यशस्वी, नीरोग और प्रेरणादायक बन सकते हैं।