अहमनृतात सत्यमुपैमि – यजुर्वेद का श्लोक | सत्य का महत्व | Ekk Nayi Soch

"अहमनृतात सत्यमुपैमि" – यजुर्वेद का शाश्वत सत्य

श्लोक: अहमनृतात सत्यमुपैमि।
संदर्भ: यजुर्वेद १।५

"अहमनृतात सत्यमुपैमि – यजुर्वेद श्लोक का अर्थ और सत्य की प्रेरणा | Ek Nai Soch"

शब्दार्थ:

  • अहम् – मैं
  • अनृतात् – असत्य से
  • सत्यम् – सत्य की
  • उपैमि – ओर जाता हूँ / आश्रय लेता हूँ

सरल अर्थ:

मैं असत्य को त्याग कर सत्य की ओर जाता हूँ।

गूढ़ व्याख्या:

यह श्लोक यजुर्वेद का अत्यंत प्रेरणादायक मंत्र है, जो हमें आत्मिक और नैतिक शुद्धता की ओर ले जाने वाला मार्ग दिखाता है। "सत्य" केवल शब्द नहीं, बल्कि चरित्र, आत्मबल और सृष्टि के मूल का प्रतीक है।

“अनृतात सत्यम् उपैमि” – यह कथन एक मानसिक और आत्मिक संकल्प है, जिसमें व्यक्ति असत्य के भ्रम, छल और पाखंड से दूर होकर सत्य की ओर बढ़ता है।

वेदों के अनुसार, सत्य ब्रह्म है – अनंत, अमिट और अटल। जब व्यक्ति सत्य का वरण करता है, तो वह अपने जीवन को धर्म, विश्वास और ईमानदारी की नींव पर रखता है।

सत्य का सामाजिक और नैतिक महत्व:

वर्तमान युग में जब असत्य, प्रचार और छल-प्रपंच का बोलबाला है, ऐसे में यह वैदिक संदेश अत्यंत प्रासंगिक हो जाता है। सत्य बोलने वाला व्यक्ति भले ही तुरंत लोकप्रिय न हो, लेकिन उसकी विश्वसनीयता स्थायी होती है।

  • सत्य समाज में विश्वास को जन्म देता है।
  • सत्य न्याय का आधार है।
  • सत्य आत्मबल और शांति का स्रोत है।

जैसा कि उपनिषदों में कहा गया है – सत्यमेव जयते नानृतम्। अर्थात – सत्य की ही विजय होती है, असत्य की नहीं

जीवन में सत्य का अभ्यास कैसे करें?

  1. हमेशा सोच-समझकर बोलें – सत्य और शुभ बोलें।
  2. दूसरों की भलाई को प्राथमिकता दें।
  3. कठिन परिस्थितियों में भी सत्य का साथ न छोड़ें।
  4. असत्य से बचने के लिए आत्मनिरीक्षण करें।

निष्कर्ष:

“अहमनृतात सत्यमुपैमि” केवल एक वैदिक मंत्र नहीं, बल्कि एक जीवन-दर्शन है। सत्य की राह कठिन हो सकती है, लेकिन वही स्थायी, शक्तिशाली और मुक्तिदायक है।

आइए, हम सब मिलकर इस वैदिक संकल्प को जीवन में उतारें – असत्य से हटें, सत्य की ओर चलें और समाज को भी इस दिशा में प्रेरित करें।


लेखक: एक नई सोच टीम
स्रोत: https://ekknayisoch.blogspot.com

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