दिव्य संकल्प शक्ति: जीवन को रूपांतरित करने की कुंजी
अथर्ववेद के पवित्र मंत्र - "आकृतिं देवींसुभगां पुरो दधे" - का अर्थ है,
मैं सौभाग्यप्रदा दिव्य संकल्पशक्ति को अपने सम्मुख रखता हूँ।
यहाँ "आकृति" का तात्पर्य उस स्वरूप, उस मानसिक छवि या उस विचार से है जिसे हम अपने मन में धारण करते हैं। यह मात्र एक पंक्ति नहीं, बल्कि जीवन को सकारात्मक दिशा में मोड़ने और उच्चतम लक्ष्यों को प्राप्त करने की एक शक्तिशाली घोषणा है। यह मंत्र हमें यह याद दिलाता है कि हमारी आकृति शक्ति, हमारी सोचने और विचारने की क्षमता, हमारे भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
मनुष्य: विचारों का पुतला
यह एक सर्वविदित सत्य है कि "मनुष्य विचारों का पुतला है।" हमारे विचार ही हमारी भावनाओं, कार्यों और अंततः हमारे भाग्य को निर्धारित करते हैं। यदि हम नकारात्मक और सीमित विचारों में डूबे रहते हैं, तो हमारा जीवन भी उसी दिशा में अग्रसर होता है। इसके विपरीत, यदि हम सकारात्मक, रचनात्मक और उच्च विचारों को पोषित करते हैं, तो हम अपने जीवन में सफलता, सुख और समृद्धि को आकर्षित कर सकते हैं।
दिव्य संकल्प: ऊंची उड़ान का मार्ग
अतः, यह अत्यंत आवश्यक है कि मनुष्य "सदा दिव्य संकल्प ही करे, सदा ऊंची उड़ान ही भरे।" दिव्य संकल्प का अर्थ है ऐसे विचारों और लक्ष्यों को धारण करना जो न केवल हमारे व्यक्तिगत विकास में सहायक हों, बल्कि दूसरों के लिए भी कल्याणकारी हों। यह हमें छोटी सोच और संकीर्ण दृष्टिकोण से ऊपर उठकर, जीवन के व्यापक उद्देश्यों को समझने और प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है।
ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान, वैराग्य: जीवन के छह स्तंभ
यह मंत्र हमें उन महत्वपूर्ण संकल्पों की ओर भी इंगित करता है जिन्हें हमें अपने जीवन का लक्ष्य बनाना चाहिए। ये छह संकल्प हैं:
- ऐश्वर्य: इसका तात्पर्य भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि से है। यह न केवल धन-संपत्ति को अर्जित करने की इच्छा को दर्शाता है, बल्कि आंतरिक शांति और संतोष को प्राप्त करने की आकांक्षा को भी समाहित करता है।
- धर्म: धर्म का अर्थ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि कर्तव्य, न्याय और नैतिक मूल्यों के मार्ग पर चलना है। यह हमें सही और गलत के बीच विवेक करने और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए प्रेरित करता है।
- यश: यश का अर्थ है सम्मान, प्रतिष्ठा और सकारात्मक पहचान। यह हमें ऐसे कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करता है जिससे हमारा और हमारे समाज का गौरव बढ़े।
- श्री: श्री का अर्थ है सौंदर्य, आकर्षण और सकारात्मक ऊर्जा। यह हमारे जीवन में प्रसन्नता, सामंजस्य और रचनात्मकता को लाने की इच्छा को दर्शाता है।
- ज्ञान: ज्ञान का अर्थ है सत्य की खोज, सीखने की ललक और बुद्धि का विकास। यह हमें दुनिया को बेहतर ढंग से समझने और सही निर्णय लेने में मदद करता है।
- वैराग्य: वैराग्य का अर्थ सांसारिक आसक्तियों से पूर्ण विरक्ति नहीं है, बल्कि अनासक्ति का भाव रखना है। यह हमें भौतिक वस्तुओं के प्रति अत्यधिक लगाव से मुक्त होकर, आंतरिक मूल्यों और आध्यात्मिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने में सहायक होता है।
अपने जीवन का लक्ष्य बनाएं
इन छह संकल्पों को अपने जीवन का लक्ष्य बनाने का अर्थ है एक संतुलित और पूर्ण जीवन जीना। यह हमें केवल भौतिक सफलता पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, अपने आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक विकास पर भी ध्यान देने के लिए प्रेरित करता है। जब हम इन उच्च आदर्शों को अपने जीवन का मार्गदर्शन बनाते हैं, तो हम न केवल व्यक्तिगत रूप से समृद्ध होते हैं, बल्कि समाज में भी सकारात्मक परिवर्तन लाने में योगदान करते हैं।
निष्कर्ष
अथर्ववेद का यह मंत्र हमें एक शक्तिशाली संदेश देता है: हमारी आकृति शक्ति हमारे जीवन को आकार देने की क्षमता रखती है। दिव्य संकल्पों को धारण करके और उन्हें अपने जीवन का लक्ष्य बनाकर, हम न केवल व्यक्तिगत सफलता प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि एक सार्थक और उद्देश्यपूर्ण जीवन भी जी सकते हैं। आइए, हम सब मिलकर इस दिव्य आकृति शक्ति को अपने जीवन में जागृत करें और एक उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर हों।