"वैदिक सुक्ति सरोवर" पुस्तक के बारे में जानकारी-
"वैदिक सुक्ति सरोवर" पुस्तक की भूमिका:-
वेद परमपिता परमात्मा का दिया हुआ दिव्य ज्ञान है |वेद परमात्मा के नि:श्वासहैं|वह परमात्मा गुरुओं का गुरु है-स एष पूवषामपि गुरु :कालेनानवच्छेदात |और गुरु काल के गाल में समा जाते हैं, परन्तु वह गुरु तो काल का भी काल है |
पशु - पक्षी पूणॅ पैदा होते हैं, गाय-भैस आदि को तैरना कोई नही सिखाता, पक्षियों को उडना नहीं सिखाता, उनका ज्ञान स्वा भाविक है, परन्तु मनुष्य का ज्ञान नैमित्तिक है | मनुष्य का बच्चा पढाने से पढ़ जाता है, तैरना सिखाने से तैरना सीख जाता है, तब आदि सृष्टि में मनुष्य को ज्ञान कहाँ से मिला? नि: सन्देह परमात्मा से |
जैसे परमात्मा ने आखों से देखने के लिए सूर्य का निर्माण किया,कानों से शब्द सुनने के लिए आकाश का निर्माण किया, उसी प्रकार बुद्धि के विकास के लिए वेद प्रदान किया |सृष्टि बन गई तो इसमें रहने का कुछ विधान भी होगा उसी विधान का नाम वेद है|सृष्टि के आदि में परमात्मा ने अग्नि, वायु, आदित्य और अडिरा-इन चारप त्रषियो को वेद का ज्ञान दिया |उन्होंने आगेवालों को पढाया |उन्होंने अपनेआगेवालो को पढाया, इस प्रकार यह ज्ञान हम तक पहुँचा |हम भी वेद का स्वाध्याय करें ओर इसे आगे तक पहुँचाएँ |
वेद ईश्वर-प्रदत्त वह दिव्य ज्ञान है, जिसके अनुसार आचरण करते से मनुष्य लोकिक और पारलौकिक दोनों प्रकार की उन्नति कर सकता है |वेद मनुष्य को भोतिक जीवन से ऊपर उठाकर मोक्ष में ले - जाता है |वेद ज्ञान और विज्ञान के अक्षय भण्डार हैं |वेदों में तृण से लेकर ब्रह्मपयॅन्त सारा ज्ञान ओर विज्ञान भरा हुआ है |
वायुयान, विधुत, एक्स - रे, इंजेक्शनादि का विज्ञान, नाना प्रकार की औषधियाँ, युद्ध - उपयोगी भयंकरतम अस्त्र और शस्त्र, नाना प्रकार की मशिनरी, उधोग-धन्धे, कला - कोशल सभी का बीजरुप में वणॅन वेदों में विधमान है|मानव - निमार्ण, सदाचार, संस्कार, धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान, शरीर-शास्र आयुर्वेद, गणित, ज्यामिति, बीजगणित, रेखागणित, सांख्यिकी, भोतिक विज्ञान आदि नाना विधाओं का वणॅन भी वेद में विधमान है|जो कुछ वेद में है, वही अन्यत्र है, जो वेद में नहीं है वह कहीं भी नहीं है |वेद अपने ज्ञान के कारण स्वय देदीप्यमान हैं |वे अखिल विधाओं ओर विधाओं के आदिस्त्रोत हैं |इसीलिए महर्षि दयानन्द ने लिखा - ``वेद सब सत्य विधाओं का पुस्तक है, वेद का पढ़ना - पढ़ाना ओर सुनना - सुनाना सब आर्यो का परम धर्म है |''
वेद की शिक्षाएँ अनूठी ओर उदात्त हैं |सारे संसार के साहित्य को पढ़ जाइए, जो ज्ञान - विज्ञान, जो रस, जो उच्च ओर दिव्य भाव वेदों में हैं वे सारे संसार के साहित्य में कहीं नहीं मिलेंगे |सारा साहित्य वेद का उच्छिष्ट है |वेदोऽ खिलो धममूलम - सारे वेद धम का आदिस्त्रोत हैं |नहि वेदात्परं शास्त्रम - संसार में वेद से बढ़कर कोई शास्र है ही नहीं |वेदों में केवल भोगोलिक ओर खगौलिक ज्ञान ही नहीं है, वेद तो मानव जीवन के साथ जुड़े हुए हैं |वेद का प्रत्येक मन्त्र जहाँ परमात्मा का प्रतिपादन करता है, वहाँ जीवन के रहस्यों को भी खोलता है|तेजोऽसि तेजो मयि धेहि जैसी तेजस्वी प्रार्थनाएँ कहाँ मिलेंगी? आ बाह्मणो बह्मवचसी जायताम - जैसी उदात्त राष्ट्र भावना का अन्यत्र मिलना दुर्लभ है |
वेद मनुष्य को निरन्तर आगे बढ़ाने ऊपर उठने और उत्रति करने का आदेश, सन्देश और उपदेश देते हैं |वेद के शब्दों में ऐसा जादु है जो गिरते हुए मनुष्य को गिरने से बचाता है ओर गिरे हुए को ऊपर उठाता है|
इस ग्रन्थ में वेद की १८४ सूक्तियां दी है। आप कम - से - कम इतना तो करें कि इन उक्तियों को पढें, इनपर मनन और चिन्तन करें। ये सूक्तियां आपके जीवन को ज्योतिर्मय बनाएँगी, आपकी हताशा ओर निराशा को दुर कर आपके जीवन में उत्साह ओर आशा की ज्योति जगाएँगी। ये सूक्तियाँ आपके जीवन को उद्रेलित करेंगी। ये आपकी नस - नस में नवचेतना, नवशक्ति ओर नवस्फूति उत्पत्र करेंगी। इन सूक्तियों को कण्ठस्थ कीजिए, अपने हृदय में लिखिए, अपने मस्तिष्क में लिखिए। घर में अश्लील ओर नग्न चित्र टाँकने के स्थान पर इन्हें लिखवाकर घरों में लटकाइए। स्वयं पढ़िए ओर दुसरों को प्रेरित कीजिए कि वे भी इन्हें पढें,गाएँ ओर गुनगुनाए।
मुझे पूणॅ आशा है कि पाठक इस ग्रन्थ को अपनाएँगे।
विदुषामनुचरः
-जगदीश्वरानन्द सरस्वती