यस्तन्न वेद किमृचा करिष्यति – वेदज्ञान का मर्म
श्लोक:
“यस्तन्न वेद किमृचा करिष्यति।” - ऋग्वेद १।१६४।३९
श्लोक का अर्थ:
इस ऋग्वेद मंत्र का भावार्थ है —
“जो उस परम सत्य को नहीं जानता, उसके लिए वेद का पाठ भी निरर्थक है।”
विस्तृत व्याख्या:
वेद केवल शाब्दिक ज्ञान नहीं, बल्कि आत्मा से परमात्मा की ओर एक यात्रा है। इस मंत्र में ऋषि दार्शनिक दृष्टिकोण से चेतावनी देते हैं कि यदि हम वेदों के मूल उद्देश्य — परमेश्वर की प्राप्ति — को नहीं समझते, तो वेद-पाठ का कोई वास्तविक लाभ नहीं है।
हमारा उद्देश्य केवल श्लोकों को रटना नहीं, बल्कि वेदों में निहित आत्मज्ञान, ब्रह्मज्ञान और धर्म का साक्षात्कार करना होना चाहिए। यह मंत्र हमें अंध श्रद्धा से मुक्त होकर विवेकपूर्ण साधना की प्रेरणा देता है।
आधुनिक जीवन में सन्देश:
आज जब हम सूचना के समुद्र में तैर रहे हैं, तब भी जीवन का उद्देश्य जानना —'स्वयं को, और उस परम सत्ता को' जानना — अधिक महत्वपूर्ण है। इस श्लोक का सार है:
- वेदों को केवल पढ़ना नहीं, समझना और जीना आवश्यक है।
- सत्य की खोज करें — आत्मा और ब्रह्म की।
- ज्ञान को जीवन में उतारें, तभी उसका सच्चा लाभ होगा।
निष्कर्ष:
“यस्तन्न वेद किमृचा करिष्यति” — यह मंत्र हमें आत्मनिरीक्षण के लिए प्रेरित करता है। केवल शास्त्रज्ञान नहीं, आत्मज्ञान भी आवश्यक है। तभी हमारा जीवन सफल, सार्थक और मोक्ष की ओर अग्रसर होगा।