'इदं वपुर्निवचनम्' श्लोक का अर्थ – मानव शरीर की वैदिक प्रशंसा और वैज्ञानिक रहस्य | Rigveda 5.47.5

🕉️ इदं वपुर्निवचनम् – मानव शरीर की वैदिक–वैज्ञानिक प्रशंसा

“यह शरीर प्रशंसा करने योग्य है।”
— ऋग्वेद ५।४७।५


इदं वपुनिचनम् श्लोक चित्र - वैदिक विज्ञान और शरीर की प्रशंसा

📖 "इदं वपुर्निवचनम्" श्लोक और भावार्थ

इदं वपुर्निवचनम्।
— ऋग्वेद ५।४७।५

वैदिक घोषः — “यह शरीर निस्संदेह प्रशंसा करने योग्य है।”


🪔"इदं वपुर्निवचनम्" श्लोक का वैदिक दृष्टिकोण

यह श्लोक उन ऋषियों की तपस्विता और वैज्ञानिक–धार्मिक दृष्टि का प्रतिबिंब है, जिन्होंने मानव शरीर को दिव्य और अनन्य मानते हुए इसकी प्रशंसा में यह उद्घोष रचा। वैदिक दर्शन में शरीर को “अभद्रुतालय” यानी अपराजेय निवास स्थान कहा गया है — जहाँ जीवन का संपूर्ण अनुभव (जागरण, स्वप्न, सुषुप्ति) संभव है।


🧬मानव शरीर की वैज्ञानिक संरचना

  • मानव मस्तिष्क: लगभग 12 अरब (1.2 बिलियन) कोशिकाएँ
  • नाड़ियाँ: 72 करोड़, 72 लाख और 12,002 प्रवाह तंत्र
  • हड्डियों का जोड़: मजबूत ढांचा जो संतुलन, गति और संरक्षा प्रदान करता है
  • मांसपेशियाँ और लिपिड लेपन: संवेदनशीलता, थ्रूप्साहिता और ऊर्जा का भंडार
  • विशिष्ट संरचनाएँ:
    • आँखें: जैसे सूर्य और चन्द्रमा के समान प्रकाश संरचना
    • इडाः, पिंगलाः, सुषुम्ना: जीवन–ऊर्जा नाड़ी तंत्र

जैसे वैदिक विवरणों में दिखाया गया है, यह शरीर “सब योनियों में सर्वश्रेष्ठ” है — न केवल भौतिक दृष्टिकोण से, बल्कि ऊर्जा विज्ञान, चेतना और आत्म–संख्या से भी।


🕊️ "इदं वपुर्निवचनम्" श्लोक का आध्यात्मिक मूल्य

वैदिक परंपरा में कहा गया है — अभ्युपासन् मन्दभाग्यः। > “जो इस दिव्य रूप को नहीं समझता और उसका स्मरण नहीं करता, वह दुर्भाग्यशाली है।” इसका आशय है — इस शरीर को पाकर भी जब हम आत्म–चेतना और जीवन–ध्यान से विमुख रहते हैं, तब हम अद्भुत उपहार को खो बैठते हैं।


🌿 आधुनिक स्वास्थ्य संदर्भ

  • पोषण एवं आहार: कोशिकाओं की संरचना के लिए जैविक तत्व जैसे प्रोटीन, वसा, सूक्ष्म–पोषक आवश्यक हैं।
  • योग और प्राणायाम: नाड़ी–ऊर्जा तंत्र को संतुलित कर आत्म–दृढ़ता प्रदान करते हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य: मस्तिष्क के न्यूरॉन्स और नाड़ियों को सकारात्मक विचार, ध्यान और साधना से दृढ़ बनाना संभव है।
  • विज्ञान-मेडिटेशन संयोजन: आधुनिक न्यूरोसाइंस यह बताता है कि नियमित मेडिटेशन से न्यूरॉन्स में नई कनेक्शन बनती हैं — यह वैदिक “तन और मन की प्रबलता” से मिलती-जुलती है।


निष्कर्ष & प्रेरणा

“इदं वपुनिचनम्” केवल एक वैदिक श्लोक नहीं, बल्कि "मानव–देह की दिव्यता" , "विज्ञान की जटिलता" , और "आध्यात्मिक चेतना" का एक सुंदर समन्वय है। यदि हम इन तथ्यों को समझें और अपनाएं, तो प्रत्येक सुबह एक उत्सव बन सकती है — क्योंकि "हमारे पास है एक धन्यवाद योग्य, अद्वितीय शरीर।" 

मानव शरीर केवल मांस और हड्डियों का एक पुतला नहीं है; यह प्रकृति का एक बेमिसाल इंजीनियरिंग कमाल, चेतना का मंदिर और आध्यात्मिक यात्रा का प्रवेश द्वार है। इसकी वैज्ञानिक बनावट, आंतरिक प्रणालियों की जटिलता और चेतना को धारण करने की अद्वितीय क्षमता इसे वास्तव में प्रशंसा के योग्य बनाती है। इस अद्वितीय उपहार को पहचानना, उसका सम्मान करना, और उसका सदुपयोग करना - न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी - ही जीवन की सार्थकता है।

यह हमें प्रेरित करता है कि हम अपने शरीर की देखभाल करें, इसके वैज्ञानिक चमत्कारों को समझें, और सबसे महत्वपूर्ण, इसे अपने जीवन के उच्च उद्देश्य को प्राप्त करने के एक माध्यम के रूप में उपयोग करें।

“आत्म–दर्शन और जैविक साधना — यही मानव–देह की वास्तविक साधना है।” — MissionKhoj.in

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