मा भूम निष्टयाइवेन्द्र - आत्मशक्ति और स्वाभिमान जागरण | अथर्ववेद २०।११६।१ | Mission Khoj

"मा भूम निष्टयाइवेन्द्र": अथर्ववेद का शक्ति-मंत्र - अशक्तता छोड़ो, अपनी दिव्य क्षमता पहचानो

मा भूम निष्टयाइवेन्द्र।
- अथर्ववेद २०।११६।१

भावार्थ: हे इन्द्र! हम अशक्त-से, दीन-दुःखी न हों।

अथर्ववेद का एक अत्यंत उद्घोषक और प्रेरणादायी मंत्र है: "मा भूम निष्टयाइवेन्द्र।" इसका सीधा और शक्तिशाली अर्थ है: "हे इन्द्र! हम अशक्त-से, दीन-दुःखी न हों।" यह मंत्र हमें केवल ईश्वर से शक्ति की याचना करना नहीं सिखाता, बल्कि हमें अपनी अंतर्निहित शक्ति, गरिमा और असीमित संभावनाओं को पहचानने के लिए ललकारता है। यह जीवन को एक उद्देश्यहीन अस्तित्व के बजाय, एक सचेत, सशक्त और सफल यात्रा के रूप में देखने का आह्वान है।


अशक्तता का त्याग: अपनी वास्तविक पहचान को जानें

मंत्र का पहला भाग "मा भूम निष्टयाइवेन्द्र" हमें अशक्तता, दीनता और निराशा की अवस्था को त्यागने का आदेश देता है। यह हमें यह समझने के लिए प्रेरित करता है कि हमारी वास्तविक प्रकृति दुर्बल या असहाय नहीं है।


  • मिट्टी के पुतले से अधिक: यह मंत्र हमें याद दिलाता है, "हे मनुष्यो! तुम मिट्टी के पुतले नहीं हो। तुम हाड़-मांस और रक्त के थैले नहीं हो। तुम निर्जीव मुर्दे के समान नहीं हो।" यह शरीर भले ही नाशवान हो, लेकिन इसके भीतर जो चेतना है, जो जीवन शक्ति है, वह अनमोल और असीमित है। हम सिर्फ़ एक भौतिक अस्तित्व नहीं हैं; हम उससे कहीं ज़्यादा हैं।
  • सजीव, शक्ति-सम्पन्न आत्मा: अथर्ववेद हमें हमारी वास्तविक पहचान बताता है - "प्रत्युत एक सजीव, शक्ति-सम्पन्न आत्मा हो।" हमारे भीतर एक दिव्य स्पंदन है, एक ऐसी ऊर्जा है जो हमें सोचने, महसूस करने, कार्य करने और अपनी नियति गढ़ने की शक्ति देती है। यह आत्मा ही हमारी चेतना का स्रोत है, हमारी रचनात्मकता का आधार है और हमारे हर प्रयास की प्रेरक शक्ति है। अशक्त महसूस करना इस आत्मा की असीमित क्षमता को नकारना है।

जीवन का उद्देश्य: निष्क्रियता छोड़ो, जीवन को सफल करो

जब हम यह पहचान लेते हैं कि हम एक शक्ति-संपन्न आत्मा हैं, तो अगला प्रश्न उठता है: "तुम्हारे जीवन का कुछ उद्देश्य है।" यह मंत्र हमें एक उद्देश्यहीन, निष्क्रिय जीवन को त्यागने और अपने जीवन को सफल बनाने के लिए प्रेरित करता है।

  • उद्देश्य की महत्ता: हर मनुष्य के जीवन का एक अनूठा उद्देश्य होता है। यह उद्देश्य बड़ा या छोटा हो सकता है, लेकिन इसका होना हमें दिशा देता है। बिना उद्देश्य के जीवन एक नाव के समान है जो बिना पतवार के सागर में भटक रही हो। अपने उद्देश्य को खोजना और उसके प्रति समर्पित होना ही जीवन को अर्थ देता है।
  • सफलता की परिभाषा: "जीवन को सफल करो" का अर्थ केवल भौतिक धन-संपदा अर्जित करना नहीं है। सच्ची सफलता तब है जब आप अपनी क्षमता के अनुसार जीवन जीते हैं, अपने लक्ष्यों को प्राप्त करते हैं, समाज में सकारात्मक योगदान देते हैं, और आंतरिक शांति व संतोष का अनुभव करते हैं। यह अपने भीतर की दिव्य आत्मा को पहचानना और उसे प्रकट करना है।
  • क्रियाशीलता का आह्वान: उद्देश्य की पहचान के बाद उसे प्राप्त करने के लिए कर्म करना अनिवार्य है। आलस्य, निष्क्रियता और टालमटोल अशक्तता के ही रूप हैं। अथर्ववेद हमें इन प्रवृत्तियों को छोड़कर सक्रिय होने, पुरुषार्थ करने और अपने सपनों को साकार करने के लिए प्रेरित करता है।

"ऐ खाक के पुतले, रसाई तो तेरी खुदा तक है!": परम शक्ति से जुड़ाव

यह मंत्र हमें एक फारसी कहावत के गहरे अर्थों से भी जोड़ता है, जो हमारे सार को और स्पष्ट करती है:

"पड़ा रह आप अपनी पस्ती से तू पस्ती में।
वरना ऐ खाक के पुतले रसाई तो तेरी खुदा तक है।।"

इस शायरी का अर्थ है: "अगर तू अपनी ही निम्न अवस्था (पस्ती) में पड़ा रहना चाहता है, तो पड़ा रह। लेकिन, हे मिट्टी के पुतले (मनुष्य), तेरी पहुँच तो ख़ुदा तक है!"

  • संभावित असीमित पहुँच: यह पंक्ति मनुष्य की असीमित क्षमता और उसके दिव्य स्रोत से जुड़ाव पर ज़ोर देती है। यह हमें याद दिलाती है कि हम सिर्फ़ भौतिक प्राणी नहीं हैं, बल्कि हमारे भीतर वह परम चेतना है जिससे हम जुड़े हुए हैं। "खुदा तक रसाई" का अर्थ केवल धार्मिक पहुँच नहीं, बल्कि स्वयं के भीतर असीमित शक्ति, ज्ञान और आनंद की अनुभूति है।
  • चुनाव हमारा है: यह शायरी हमें यह भी बताती है कि अशक्त रहना या अपनी वास्तविक क्षमता को पहचानना, यह चुनाव हमारा अपना है। हम चाहें तो अपनी निष्क्रियता और नकारात्मकता में डूबे रह सकते हैं, या हम चाहें तो अपनी आंतरिक शक्ति को जगाकर उच्चतम आध्यात्मिक और व्यक्तिगत लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।

निष्कर्ष: अपनी दिव्यता को जगाओ और जीवन को जीतो!

अथर्ववेद का "मा भूम निष्टयाइवेन्द्र" मंत्र और उसके साथ यह प्रेरणादायक व्याख्या हमें एक अत्यंत महत्वपूर्ण संदेश देती है: तुम अशक्त नहीं हो! तुम एक शक्ति-सम्पन्न आत्मा हो, जिसके जीवन का एक महान उद्देश्य है। यह समय है अपनी ही बनाई हुई सीमाओं को तोड़ने का, आलस्य और निराशा को त्यागने का, और अपनी वास्तविक, दिव्य क्षमता को पहचानने का।

अपने भीतर के "इन्द्र" (जो कि हमारी शक्ति, नेतृत्व और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक है) को जागृत करें। अपनी आत्मा की आवाज़ सुनें, अपने जीवन के उद्देश्य को पहचानें और उसके प्रति पूर्ण समर्पण के साथ कार्य करें। जब आप ऐसा करते हैं, तो आप न केवल अपने लिए एक सफल और संतुष्ट जीवन का निर्माण करेंगे, बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेंगे। याद रखें, आप मिट्टी के पुतले नहीं, बल्कि उस परम सत्ता का अंश हैं जिसकी पहुँच असीमित है। उठो, जागो और अपनी दिव्यता को जीओ!

अथर्ववेद श्लोक – मा भूम निष्टयाइवेन्द्र | आत्मबल और शक्ति

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