प्रेमपूर्ण दृष्टि और मधुर वाणी का आदर्श: घृतं मे चक्षुरमृतं म आसन - सामवेद ६१३

घृतं मे चक्षुरमृतं म आसन। - सामवेद ६१३

वैदिक प्रेम और मधुर वाणी से प्रेरित चित्र

श्लोक:
घृतं मे चक्षुरमृतं म आसन।
(सामवेद ६१३)

"घृतं मे चक्षुरमृतं म आसन"श्लोक का अर्थ:

मेरी आँखों में प्रेम और करुणा हो। मेरी वाणी अमृतमयी हो।

व्याख्या:

यह श्लोक केवल एक प्रार्थना नहीं, बल्कि एक आदर्श मनुष्य के चारित्रिक गुणों का चित्रण है। वैदिक ऋषि कहते हैं कि हमारी दृष्टि घृतवत हो — यानी कोमल, शांत, और प्रेमपूर्ण। घी की तरह जो सहज बहता है, वैसी ही हमारी करुणा हो।

जब हम दूसरों के दुख को देखकर स्वयं व्यथित हो उठें और उनकी पीड़ा को कम करने की भावना हमारे व्यवहार में झलकने लगे — वही "घृतं मे चक्षु:" का सच्चा अर्थ है।

इसी प्रकार वाणी अमृतमयी होनी चाहिए। हमारे शब्दों में कटुता नहीं, मधुरता हो; द्वेष नहीं, स्नेह हो; आलोचना नहीं, समाधान हो।

आधुनिक सन्दर्भ में श्लोक की प्रासंगिकता:

  • मानवता की सेवा हेतु करुणा अनिवार्य है।
  • सकारात्मक संवाद समाज को जोड़ता है, तोड़ता नहीं।
  • मधुर वाणी और स्नेही दृष्टि से हम परिवार, समाज और कार्यस्थल में सौहार्द ला सकते हैं।

संदेश:

आइए, इस श्लोक को जीवन का हिस्सा बनाएं। प्रेम से देखें, मधुरता से बोलें, करुणा से जिएं।

स्मरण रखें: शब्दों का प्रभाव तलवार से अधिक गहरा होता है।

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